भीषण गर्मी में छात्रों को पानी के लिए तरसना पड़ा, गोपेश्वर महाविद्यालय में

हथुआ (गोपालगंज/बिहार): “जल ही जीवन है” – यह वाक्य केवल गोपेश्वर महाविद्यालय (Gopeshwar Mahavidyalay Hathuwa) की दीवारों पर लिखा हुआ दिखाई देता है, पर जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। तेज़ गर्मी और लू के पेड़ों के बीच जब शरीर पानी की एक-एक बूंद को तरसता है, तब इस महाविद्यालय में पढ़ाई करने आए छात्र पेयजल के लिए या तो बाहर की दुकानों से पानी खरीदने को मजबूर हैं या फिर दूषित, बंद पड़े चापाकलों की ओर देखने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता।

पुरे परिसर में जल आपूर्ति की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। पूर्व में लगे कुछ चापाकल या तो पूरी तरह बंद पड़े हैं या उनमें कीड़े-मकौड़े और अन्य जहरीले जीव-जंतु पनप रहे हैं। वाटर प्यूरीफायर मशीन, जो कभी शुद्ध जल का स्रोत हुआ करती थी, अब केवल एक शोपीस बनकर रह गई है, न तो उससे पानी निकलता है, न ही उसकी मरम्मत की कोई योजना महाविद्यालय के पास है।

विश्वविद्यालय को भेजी गई मरम्मत हेतु अर्जी अब तक अनसुनी पड़ी है। कॉलेज प्रशासन के अनुसार जब तक विश्वविद्यालय से आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी, तब तक पेयजल आपूर्ति बहाल नहीं हो सकती। सवाल उठता है कि क्या एक शिक्षा संस्थान के पास इतना भी फंड नहीं होता कि वह कम से कम पीने के पानी की व्यवस्था कर सके?

स्नातक के नवसत्र में जहां नामांकन और प्रायोगिक परीक्षाएं चल रही हैं, वहां छात्रों की संख्या भी बढ़ी हुई है। ऐसे में पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा का न होना संस्थान की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। अभाविप द्वारा इस संबंध में प्राचार्य को मांगपत्र भी सौंपा गया, परन्तु अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

बंद कल के सामने खड़े – विद्यार्थी

छात्रों का कहना है कि “शिक्षा का मंदिर” (Education Temple) कहे जाने वाले इस स्थान में अगर पानी जैसा मूलभूत अधिकार भी न मिले तो यह हमारी शिक्षा व्यवस्था की विफलता का प्रतीक है।

यह केवल एक कॉलेज की समस्या नहीं है, यह पूरे तंत्र को झकझोरने वाला विषय है। भीषण गर्मी में पेयजल की अनुपलब्धता कोई सामान्य समस्या नहीं, बल्कि यह एक जीवन से जुड़ा गंभीर प्रश्न है, जिसका उत्तर अब महाविद्यालय को देना ही होगा।

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